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पारिवारिक कानून

विवाह का अपूरणीय विच्छेद

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 31-Aug-2023

राजीब कुमार रॉय बनाम सुष्मिता साहा

"विवाह के अपूरणीय विच्छेद के बावजूद पार्टियों को एक साथ रखना दोनों पक्षों के लिये क्रूरता के समान है"।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया

स्रोत- उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

राजीव कुमार रॉय बनाम सुष्मिता साहा के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विवाह के अपूरणीय विच्छेद के बावजूद दोनों पक्षों को एक साथ रखना दोनों पक्षों के लिये क्रूरता है।

पृष्ठभूमि

  • अपीलकर्ता और प्रतिवादी पति-पत्नी हैं जिनकी शादी वर्ष 2007 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी।
  • अपीलकर्ता के अनुसार, प्रतिवादी ने 2010 में अपनी ससुराल का घर छोड़ दिया था।
  • अपीलकर्ता (पति) ने 2012 में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिये एक याचिका दायर की थी, जिसे 2013 में पारिवारिक न्यायालय ने खारिज कर दिया था।
  • उच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई जिसे बाद में वापस ले लिया गया।
  • क्रूरता और परित्याग के आधार पर विवाह विच्छेद की याचिका बाद में पारिवारिक न्यायालय के समक्ष दायर की गई थी, फिर इस याचिका को भी खारिज कर दिया गया था।
  • उस आदेश के खिलाफ अपीलकर्ता द्वारा दायर अपील को भी उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था।
  • इसके बाद, अपीलकर्ता द्वारा उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की गई।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए तलाक की डिक्री दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि किसी मामले के दिये गये तथ्यों और परिस्थितियों में जारी कड़वाहट, भावनात्मक रूप से मृतप्राय यानी जिसमें सुधार की कोई संभावना न हो तथा अपूर्ण रूप से टूट चुके हों और लंबे अलगाव को विवाह के अपूरणीय विच्छेद माना जाएगा और अपूरणीय विच्छेद होने के बावजूद दोनों पक्षों को एक साथ रखने को दोनों पक्षों के लिये क्रूरता के समान मामले के रूप में माना जा सकता है।
  • पीठ ने यह भी कहा कि जब विवाह अपूरणीय रूप से टूट जाता है तो विवाह विच्छेद ही एकमात्र समाधान होता है।

कानूनी प्रावधान

विवाह के अपूरणीय विच्छेद का सिद्धांत

  • इस अवधारणा की उत्पत्ति 1921 में लॉडर बनाम लॉडी के ऐतिहासिक निर्णय के माध्यम से न्यूज़ीलैंड में हुई थी।
  • विवाह का अपूरणीय विच्छेद एक ऐसी स्थिति है जिसमें पति और पत्नी काफी समय से अलग-अलग रह रहे हैं और उनके दोबारा साथ रहने की कोई संभावना नहीं है।
  • इस सिद्धांत को अनौपचारिक वैधता प्राप्त हो गई है क्योंकि इसे तलाक देने वाले कई न्यायिक निर्णयों में लागू किया गया है।
  • भारत में, हिंदू विवाह अधिनिमय में तलाक के लिये इस तरह के आधार को शामिल करना अभी तक संभव नहीं हुआ है, लेकिन विभिन्न विधि आयोग की रिपोर्टों में इसका पुरजोर तरीके से सुझाव दिया गया है और इस संबंध में विवाह कानून (संशोधन) विधेयक, 2010 नामक संसद में एक विधेयक पेश किया गया था।

दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना

  • ‘दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना’ अभिव्यक्ति का अर्थ उन दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना से है जो पहले पार्टियों द्वारा प्राप्त किये गये थे।
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 वैवाहिक अधिकारों की बहाली से संबंधित है। यह कहती है कि -
    • जब पति या पत्नी में से कोई भी, बिना किसी उचित कारण के, दूसरे के समाज से अलग हो जाता है, तो पीड़ित पक्ष दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिये ज़िला न्यायालय में याचिका द्वारा आवेदन कर सकता है और न्यायालय ऐसी याचिका में दिये गए बयानों की सच्चाई से संतुष्ट होने पर आवेदन कर सकती यदि अदालत संतुष्ट है कि याचिका में प्रस्तुत बयान सही हैं और बहाली का उपाय देने में कोई कानूनी रोक नहीं है, तो अदालत वैवाहिक अधिकारों की बहाली की डिक्री पास कर सकती है।
    • स्पष्टीकरण - जहाँ यह प्रश्न उठता है कि क्या समाज से अलग होने के लिये कोई उचित बहाना है, तो उचित बहाने को साबित करने का भार उस व्यक्ति पर होगा जिसने समाज से अपना नाम वापस ले लिया है।